
हर साल जब स्कूलों में बच्चे ‘Happy Teachers Day’ बोलकर पेन-फूल थमाते हैं, तो बहुतों को नहीं पता होता कि इस दिन की शुरुआत एक बर्थडे पार्टी रिजेक्ट होने से हुई थी।
जी हां! डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन को उनके छात्र उनके जन्मदिन पर कुछ केक-फूल-वाला सेलिब्रेशन देना चाहते थे, लेकिन उन्होंने कहा –
“Cake नहीं, chalk पकड़ाओ। मेरा जन्मदिन नहीं, शिक्षक दिवस मनाओ!”
और बस वहीं से शुरू हुआ Teacher’s Day – एक ऐसा दिन जिसमें बच्चे शिक्षक को फूल देते हैं और शिक्षक बदले में उन्हें होमवर्क!
कौन थे डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन?
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जन्म: 5 सितंबर, 1888, तमिलनाडु के तिरुत्तनी में
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प्रोफेशन: पहले दार्शनिक, फिर प्रोफेसर, और फिर राष्ट्रपति (कुछ लोग इसे “सिलेबस टू सिस्टम” जर्नी कहते हैं)
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पढ़ाई: मद्रास क्रिश्चियन कॉलेज से फिलॉसफी
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खासियत: दुनिया को बताया कि फिलॉसफी सिर्फ सोचने की चीज नहीं, जीने की कला है
उनकी किताबें जैसे “The Philosophy of Rabindranath Tagore” और “Indian Philosophy” आज भी सिविल सेवा के छात्रों के लिए परीक्षा से ज़्यादा प्रेशर पैदा करती हैं।
कैसे शुरू हुआ शिक्षक दिवस? (नोट्स बनाओ, बोर्ड पर आएगा)
छात्रों की प्लानिंग:
“सर का बर्थडे है, तो पार्टी होनी चाहिए!”
राधाकृष्णन सर की प्रतिक्रिया:
“अगर वाकई मुझे सम्मान देना है, तो मेरा जन्मदिन ‘Teachers’ Day’ के रूप में मनाओ। ये सम्मान सिर्फ मेरे लिए नहीं, सभी शिक्षकों के लिए होगा।”
और तब से 1962 से लेकर आज तक – होमवर्क भी आता है, स्पीच भी, और फूल भी।

उनकी कुछ प्रमुख उपलब्धियां (MCQs में पूछे जा सकते हैं):
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1952-1962: भारत के पहले उपराष्ट्रपति
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1962-1967: दूसरे राष्ट्रपति
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1954: भारत रत्न
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ऑक्सफोर्ड, कलकत्ता और मैसूर विश्वविद्यालयों में प्रोफेसर
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दुनियाभर की यूनिवर्सिटीज से डॉक्टरेट की झड़ी (इतनी डिग्रियां थीं कि फ्रेम कम पड़ जाए)
गुरु की महिमा: मां-बाप ने चलना सिखाया, गुरुजी ने जिंदगी
भारतीय संस्कृति में “गुरु ब्रह्मा, गुरु विष्णु, गुरु देवो महेश्वर…” सिर्फ मंत्र नहीं, भावनाओं की फुल-सिलेबस कविता है।
आज भी गांव-शहर हर जगह एक बात कॉमन है –
“गुरुजी अगर नाराज हो गए तो इंटरनल में नंबर कटेंगे!”
इस Teacher’s Day पर सिर्फ ग्रीटिंग नहीं, थोड़ा ज्ञान भी सम्मान के साथ बांटिए।
“अगर आज आप कुछ समझ पाते हैं, लिख पाते हैं, सोच पाते हैं — तो किसी गुरु की छड़ी, चिल्लाहट, या चौक की वजह से ही।”
शिक्षक दिवस सिर्फ एक तारीख नहीं, वो रिश्ता है जिसमें बिना फीस के, ज़िंदगी का सबसे बड़ा पाठ पढ़ाया जाता है।
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